Ganesh Mantra (गणेश मंत्र)

20230818 222257 scaled
Spread the knowledge

गजाननाय महसे प्रत्यूहतिमिरच्छिदे । अपारकरुणापूरतरङ्गितदृशे नमः ॥

भावार्थ :

विघ्नरूप अन्धकार का नाश करनेवाले, अथाह करुणारूप जलराशि से तरंगति नेत्रों वाले गणेश नामक ज्योतिपुंज को नमस्कार है ।

पुराणपुरुषं देवं नानाक्रीडाकरं मुद्रा । मायाविनां दुर्विभावयं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥

भावार्थ :

जो पुराणपुरुष हैं और प्रसन्नतापूर्वक नाना प्रकार की क्रीडाएँ करते हैं ; जो माया के स्वामी हैं तथा जिनका स्वरूप दुर्विभाव्य है, उन मयूरेश गणेश को मैं प्रणाम करता हूँ ।

प्रातः स्मरामि गणनाथमनाथबन्धुं सिन्दूरपूरपरिशोभितगण्डयुगमम् उद्दण्डविघ्नपरिखण्डनचण्डदण्ड माखण्डलादिसुरनायकवृन्दवन्द्यम् ॥

भावार्थ :

जो इन्द्र आदि देवेश्वरों के समूह से वन्दनीय हैं, अनाथों के बन्धु हैं, जिनके युगल कपोल सिन्दूर राशि से अनुरञ्जित हैं, जो प्रवल विघ्नों का खण्डन करने के लिए प्रचण्ड दण्डस्वरूप हैं, उन श्रीगणेश जी का मैं प्रातः काल स्मरण करता हूँ ।

आवाहये तं गणराजदेवं रक्तोत्पलाभासमशेषवन्द्दम् । विध्नान्तकं विध्नहरं गणेशं भजामि रौद्रं सहितं च सिद्धया ॥

भावार्थ :

जो देवताओं के गण के राजा हैं, लाल कमल के समान जिनके देह की आभा है, जो सबके वन्दनीय हैं, विघ्न के काल हैं, विघ्नों को हरनेवाले हैं, शिवजी के पुत्र हैं, उन गणेशजी का मैं सिद्धि के साथ आवाहन और भजन करता हूँ ।

परात्परं चिदानन्दं निर्विकारं हृदि स्थितम् । गुणातीतं गुणमयं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥

भावार्थ :

जो परात्पर, चिदानन्दमय, निर्विकार, सबके हृदय में अंतर्यामी रूप से स्थित, गुणातीत एवं गुणमय हैं, उन मयूरेश गणेश को मैं प्रणाम करता हूँ ।

तमोयोगिनं रुद्ररूपं त्रिनेत्रं जगद्धारकं तारकं ज्ञानहेतुम् । अनेकागमैः स्वं जनं बोधयन्तं सदा सर्वरूपं गणेशं नमामः ॥

भावार्थ :

जो तमो गुण के सम्पर्क से रुद्ररूप धारण करते हैं, जिनके तीन नेत्र हैं, जो जगत् के हर्ता, तारक और ज्ञान के हेतु हैं तथा जो अनेक आगमोक्त वचनों द्धारा अपने भक्तजनों को सदा तत्त्वज्ञानोपदेश देते रहते हैं, उन सर्वरूप गणेश को हम नमस्कार करते हैं ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *