Saraswati Shloka
सरस्वति नमौ नित्यं भद्रकाल्यै नमो नम: । वेदवेदान्तवेदाङ्गविद्यास्थानेभ्य एव च ॥
भावार्थ :
सरस्वती को नित्य नमस्कार है, भद्रकाली को नमस्कार है और वेद, वेदान्त, वेदांग तथा विद्याओं के स्थानों को प्रणाम है ।
सरस्वति महाभागे विद्ये कमललोचने । विद्यारूपे विशालाक्षि विद्यां देहि नमोऽस्तु ते ॥
भावार्थ :
हे महाभाग्यवती ज्ञानरूपा कमल के समान विशाल नेत्र वाली, ज्ञानदात्री सरस्वती ! मुझको विद्या दो, मैं आपको प्रणाम करता हूँ ।
लक्ष्मीर्मेधा धरा पुष्टिर्गौरी तुष्टि: प्रभा धृति: । एताभि: पाहि तनुभिरष्टाभिर्मां सरस्वति ॥
भावार्थ :
हे सरस्वती ! लक्ष्मी, मेघा, धरा, पुष्टि, गौरी, तुष्टि, प्रभा, धृति – इन आठ मूर्तियों से मेरी रक्षा करो ।
आशासु राशीभवदङ्गवल्लीभासैव दासीकृतदुग्धसिन्धुम् । मन्दस्मितैर्निन्दितशारदेन्दुं वन्देऽरविन्दासनसुन्दरी त्वाम् ॥
भावार्थ :
हे कमल पर बैठनेवाली सुन्दरी सरस्वती ! तुम सब दिशाओं में पुंजीभूत हुई अपनी देहलता की आभा से ही क्षीर-समुद्र को दास बनानेवाली और मन्द मुसकान से शरद् ऋतु के चन्द्रमा को तिरस्कृत करनेवाली हो, आपको मैं प्रणाम करता हूँ ।
वीणाधरे विपुलमङ्गलदानशीले भक्तार्तिनाशिनि विरिञ्चिहरीशवन्द्ये । कीर्तिप्रदेऽखिलमनोरथदे महार्हे विद्याप्रदायिनि सरस्वतिनौमि नित्यम् ॥
भावार्थ :
हे वीणा धारण करनेवाली, अपार मंगल देनेवाली, भक्तों के दुःख छुड़ाने वाली, ब्रह्मा, विष्णु और शिव से वन्दित होनेवाली कीर्ति तथा मनोरथ देनेवाली, पूज्यवरा और विद्या देनेवाली सरस्वती ! आपको नित्य प्रणाम करता हूँ ।
श्वेताब्जपूर्णविमलासनसंस्थिते हे श्वेताम्बरावृतमनोहरमञ्जुगात्रे । उद्यन्मनोज्ञसितपङ्कजमञ्जुलास्ये विद्याप्रदायिनि सरस्वति नौमि नित्यम् ॥
भावार्थ :
हे श्वेत कमलों से भरे हुए निर्मल आसन पर विराजनेवाली, श्वेत वस्त्रों से ढके सुन्दर शरीरवाली, खिले हुए सुन्दर श्वेत कमल के समान मंजुल मुखवाली और विद्या देनेवाली सरस्वती ! आपको नित्य प्रणाम करता हूँ ।
मोहान्धकारभरिते ह्रदये मदीये मात: सदैव कुरु वासमुदारभावे । स्वीयाखिलावयवनिर्मलसुप्रभाभि: शीघ्रं विनाशय मनोगतमन्धकारम् ॥
भावार्थ :
हे उदार बुद्धिवाली माँ ! मोहरूपी अन्धकार से भरे मेरे हृदय में सदा निवास करो और अपने सब अंगो की निर्मल कान्ति से मेरे मन के अन्धकार का शीघ्र नाश करो ।